A Review Of Shiv chaisa
A Review Of Shiv chaisa
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अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
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हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव…॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
जय सन्तोषी मात अनूपम। शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥ सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। वेश मनोहर ललित अनुपा॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
जीत के लंक विभीषण दीन्हा ॥ सहस कमल में हो रहे Shiv chaisa धारी ।
सहस कमल में हो रहे धारी। Shiv chaisa कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
लिङ्गाष्टकम्